गंगा किनारे वाले शहरों से भी ओजोन परत को नुकसान पहुंच रहा है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) के केदारेश्वर बनर्जी वातावरणीय एवं समुद्री विज्ञान केंद्र में चल रहे शोध के प्रारंभिक चरण में यह तथ्य सामने आए हैं। केंद्र के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शैलेंद्र राय एवं उनके शोधार्थी विक्रम सिंह शोध कर रहे हैं कि इंडो गैंगेटिक प्लेन यानी गंगा किनारे वाले क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रहे पर्यावरण प्रदूषण का ओजोन परत पर क्या असर पड़ रहा है।
क्लोरोफ्लोरो कार्बन जैसे कारकों का उत्सर्जन तेजी से हो रहा
शोध के प्रारंभिक चरण में पता चला है कि इन क्षेत्रों में भी पर्यावरण प्रदूषण के लिए जिम्मेदारी कार्बन डाई ऑक्साइड, पर्टिकुलेट मैटर (पीएम) – 2.5, क्लोरोफ्लोरो कार्बन जैसे कारकों का उत्सर्जन तेजी से हो रहा है, जिससे ओजोन परत को नुकसान पहुंच रहा है।

पर्यावरण प्रदूषण ओजोन परत को तेजी से नुकसान पहुंचा रहा
उत्पादन की दृष्टि से गंगा नदी के आसपास के क्षेत्रों को सबसे अधिक समृद्ध माना जाता है। इसी वजह से इन क्षेत्रों में आबादी तेजी से बढ़ी है। वाहनों की संख्या लगातार बढ़ रही है। फ्रिज, एसी आदि के इस्तेमाल भी तेजी से बढ़ रहे हैं और इससे बढ़ रहा पर्यावरण प्रदूषण परत को तेजी से नुकसान पहुंचा रहा है। डॉ. शैलेंद्र राय ने बताया कि इसकी रोकथाम के लिए उचित कदम उठाए जाने की जरूरत है।
समताप मंडल (स्टेटो स्पेयर) में ओजोन की परत पाई जाती है
इस दिशा में भी शोध हो रहा है कि इसकी रोकथाम के लिए क्या उपाय किए जाएं। समताप मंडल (स्टेटो स्पेयर) में ओजोन की परत पाई जाती है। यह परत दो से पांच मिली मीटर तक मोटी होती है और पृथ्वी के चारों ओर होती है। इसकी वजह से पराबैगनी किरणें पृथ्वी तक नहीं पहुंच पातीं।
साउथ और नॉर्थ पोल में कहीं-कहीं ओजोन परत खत्म हो रही
पराबैगनी किरणें जब ऑक्सीजन के दो मॉलीक्यूल में एक तो तोड़ देती हैं और वह दूसरे ऑक्सीजन के साथ जुड़कर तीसरा मॉलीक्यूल बन जाता है तो इससे ओजोन परत का निर्माण होता है। साउथ और नॉर्थ पोल में कहीं-कहीं परत खत्म हो रही है। इसमें छेद पाए गए हैं और पराबैगनी किरणें पृथ्वी तक पहुंच रहीं हैं। ये किरणें त्वचा संबंधी बीमारियों को जन्म देती हैं। इससे त्वचा कैंसर का खतरा भी होता है।
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ओजोन को बचाने के लिए दूसरे रास्ते भी तलाशने होंगे
फ्रिज और एसी से निकलने वाली क्लोरोफ्लोरो कार्बन, नाइट्रोजन के कंपोनेंट जैसे नाइट्रोजन ऑक्साइड के कारण हाल के वर्षों में ओजोन परत को होने वाले नुकसान का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। के. बनर्जी वातावरणीय एवं समुद्री विज्ञान केंद्र के डॉ. शैलेंद्र राय बताते हैं कि फ्रिज और एसी के निर्माण में भी नई तकनीक का इस्तेमाल होने लगा है, जिसकी वजह से प्रदूषण में इनकी भागीदारी कम हुई है। इसी तरह ओजोन परत को बचाने के लिए दूसरे रास्ते भी तलाशने होंगे।
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