khaskhabar/नैनीताल खतरे में है. पहाड़ियां दरक रही हैं. गिर रही हैं. बड़े चूना पत्थर झील में समा रहे हैं. पहाड़ियों की भार क्षमता खत्म हो चुकी है. पहाड़ तो खत्म हो जाएंगी. अगर अभी निर्माण कार्यों को नहीं रोका गया तो नैनीताल को बचाना मुश्किल हो जाएगा. किसी भी पहाड़ियां या शहर की एक भार क्षमता होती है.

नैनीताल पर बड़ा खतरा मंडरा रहा
इंसान अगर उससे ज्यादा निर्माण करेगा या वजन बढ़ाएगा तो वह धंस जाएगी. यही हो रहा है नैनीताल (Nainital) के साथ. नैनीताल पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है. वहां की पहाड़ियां तेजी से दरक रही हैं. धंस रही हैं. गिर रही हैं. उनसे गिरने वाले चूना पत्थर झीलों में जा रहे हैं.
साफ-सुथरे वातावरण और सभी सुविधाओं से युक्त एक शहर
भूगर्भ वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर नैनीताल में निर्माण कार्य रोके नहीं गए तो इस खूबसूरत पर्यटक शहर को बचा पाना मुश्किल होगा.अंग्रेजों ने नैनीताल को बसाया था. साफ-सुथरे वातावरण और सभी सुविधाओं से युक्त एक शहर. यहां का हवा-पानी सेहत के हिसाब से बेहतरीन था. अंग्रेजों ने नैनीताल को बसाया था.
इलाका भूगर्भीय बदलावों के अनुसार संवेदनशील
साफ-सुथरे वातावरण और सभी सुविधाओं से युक्त एक शहर. यहां का हवा-पानी सेहत के हिसाब से बेहतरीन था. अंग्रेजों ने नैनीताल में आबादी तय कर रखी थी कि इससे ज्यादा जनसंख्या यहां नहीं होनी चाहिए. क्योंकि तब भी यह इलाका भूगर्भीय बदलावों के अनुसार संवेदनशील था. नैनीताल का मॉल रोड तो शुरुआत से ही काफी नाजुक इलाके पर बसा है. ऐसे में 1880 में आए विनाशकारी भूस्खलन की याद आती है.
ज्यादा मात्रा में पत्थर या भूस्खलन झील में गया तो शहर में पानी सुनामी की तरह घुसेगा
नैनी झील के तीन तरफ पहाड़ियां दरक रही हैं. दो तरफ शहर दिख रहा है. अगर ज्यादा मात्रा में पत्थर या भूस्खलन झील में गया तो शहर में पानी सुनामी की तरह घुसेगा. 18 सितंबर, 1880 को नैनीताल की आबादी 10 हजार से भी कम थी. तब नैनीताल की अल्मा पहाड़ी, जिसे सात नंबर भी कहते हैं. वहां पर भयानक भूस्खलन हुआ. इसमें 43 ब्रिटिश नागरिकों समेत 151 लोगों की मौत हो गई थी.
पहाड़ियों के भार-वहन क्षमता के आकलन की बात होने लगी
नैनीताल के इतिहास का सबसे दर्दनाक दिन गिना जाता है इसे. इसके बाद नैनीताल के लोगों की दुनिया बदल गई. तब से यहां पर पहाड़ियों के भार-वहन क्षमता के आकलन की बात होने लगी.नैनीताल में 24 जुलाई 2022 यानी रविवार को फिर अल्मा हिल यानी सात नंबर पर एक बड़ा भूस्खलन हुआ. यह भूस्खलन 1 घंटे की बारिश के बाद हुआ.
इलाके में दहशत का माहौल बना हुआ
भूस्खलन की चपेट में कई मकान भी आ गए. स्नोव्यू का जाने वाला रास्ता भी इसी भूस्खलन से बर्बाद हो गया. 50 मीटर के दायरे में पहाड़ी दरक गई. मार्ग के कई पेड़ उखड़ गए. इसके बाद से इस इलाके में दहशत का माहौल बना हुआ है. दर्जनभर से अधिक परिवारों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
बलिया नाला क्षेत्र में 1972 से लगातार भूस्खलन हो रहा
1880 में जिस अल्मा पहाड़ी यानी सात नंबर पर भयानक भूस्खलन हुआ था, वहां 24 जुलाई 2022 को फिर से पहाड़ दरक गया. नैनीताल शहर के आधार बलिया नाला के जलागम क्षेत्र में जीआईसी इंटर कॉलेज के नीचे भी भारी भूस्खलन जारी है. इस दौरान कई घर बलिया नाले में समा चुके हैं. बलिया नाला क्षेत्र में 1972 से लगातार भूस्खलन हो रहा है. इसके बावजूद भी सरकार इस क्षेत्र में हो रहे भूस्खलन को रोकने में असफल रही है. इस वजह से अब नैनीताल के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है.
यह भी पढ़े —द्रौपदी मुर्मू बनीं भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति, सीजेआई एन वी रमन्ना ने दिलाई शपथ
अयारपाटा हिल पहाड़ी में डीएसबी कॉलेज के पास भी भूस्खलन हो रहा
बलिया नाला क्षेत्र को नैनीताल की बुनियाद माना जाता है. नैनीताल की अयारपाटा हिल पहाड़ी में डीएसबी कॉलेज के पास भी भूस्खलन हो रहा है. यह बहुत तेजी से बढ़ रहा है. इससे डीएसबी कॉलेज के केपी और एसआर महिला छात्रावास को भारी नुकसान हुआ है. इस भूस्खलन से मलबा और भारी बोल्डर आए दिन नैनी झील में गिर रहे हैं. शेर का डंडा पहाड़ी में भी इस मूसलाधार बरसात में 18 अक्टूबर 2021 की रात 1 बजे भारी भूस्खलन हुआ था, जिससे पहाड़ी से भारी बोल्डर और पेड़ मलबे के साथ बहते हुए आए थे.
और ज्यादा खबरे पढ़ने और जानने के लिए ,अब आप हमे सोशल मीडिया पर भी फॉलो कर सकते है –
ट्विटर पर फॉलो करने के लिए टाइप करे – @khas_khabar एवं न्यूज़ पढ़ने के लिए #khas_khabar फेसबुक पर फॉलो करने के लाइव आप हमारे पेज @socialkhabarlive को फॉलो कर सकते है |