Khaskhabar/प्रशासन से नहीं मिली मदद,सोशल मीडिया से रकम जुटाकर छात्रों ने स्कूल को किया सुरक्षित,अन्य लोगों से भी मिली मदद|छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में स्थित शासकीय प्राइमरी स्कूल गढ़कटरा के बच्चों व शिक्षक ने मिलकर एक अनूठी पहल की है। पहाड़ के करीब संचालित होने से स्कूल के आसपास वन्य प्राणियों की आमद का डर बना रहता है।

ऐसे में यहां बच्चों की सुरक्षा के लिए मजबूत घेरा बनाने की जरूरत लंबे समय से थी। पक्का अहाता निर्माण करने की मांग जब पूरी नहीं हुई, तो बच्चों व शिक्षक ने सोशल मीडिया के जरिए लोगों को अपनी समस्या बताई। समस्या जानकर मदद करने वाले आगे आए। सामुदायिक सहभागिता से राशि व सामग्री एकत्रित कर स्कूल के चारों ओर 150 मीटर तार फेंसिंग लगाई गई।

35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित स्कूल
जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित स्कूल के एक पहाड़ी के नजदीक होने और गांव से लगे जंगल से भालू-तेंदुए जैसे वन्य प्राणियों का आना-जाना लगा रहता है। स्कूल परिसर में बाड़ी भी लगाई गई है, जिसमें गांव के पालक-शिक्षक व बच्चे खुद मेहनत कर तैयार किए गए किचन गार्डन की सब्जियों का मध्यान्ह भोजन में प्रयोग करते हैं।
ऐसे में बच्चों व सब्जी बाड़ी की सुरक्षा के लिए पालक ही बांस व अन्य लकड़ियों का अस्थायी घेरा बनाते रहे हैं, जो हर साल टूटकर खराब हो जाता था। अगले सत्र फिर उतनी ही मेहनत करनी पड़ती, लेकिन समस्या यह थी कि सुरक्षा की कमी से मवेशी घुसकर पौधों को चर जाते थे। शासन-प्रशासन से भी पक्की दीवार के लिए मदद की गुजारिश की गई पर कोई लाभ न हुआ। इस समस्या व सुरक्षा का स्थायी उपाय निकालने शिक्षक श्रीकांत अनुभव व बच्चों ने सामुदायिक सहभागिता से 42 हजार जुटाए।
सरपंच ने सीमेंट व 60 खंभे दिए। पालक हरिहर सिंह ने रेत तो मोहन कंवर ने गिट्टी उपलब्ध कराई। सोशल मीडिया के जरिए एकत्रित राशि से फेंसिंग तार खरीदा गया। पालकों के अलावा ग्रामीण भी श्रमदान के लिए सामने आए। हफ्ते में दो दिन फेंसिंग निर्माण में ग्रामीणों ने योगदान दिया और चार दिन के सामूहिक प्रयास से स्कूल में सुरक्षा का स्थायी इंतजाम कर लिया गया।
यदि हम ठान लें तो कुछ भी मुश्किल नहीं
स्कूल परिसर में फेंसिंग निर्माण में बच्चों की सहायता करने वाले शिक्षक श्रीकांत ने बताया कि ग्रामीण स्कूल परिसर में अहाता निर्माण की समस्या के निदान के लिए प्रशासन और जनप्रतिनिधियों का चक्कर काट रहे थे। इस बीच स्कूल के बच्चों ने सोशल मीडिया में इस समस्या को रखा। मैंने बच्चों की मदद करने की ठानी और ग्रामीणों से मेहनत का योगदान मांगा।
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ग्रामीण सहमत हो गए और उसका एक सुखद परिणाम सब के सामने है। किसी भी कार्य के लिए एक ठोस रणनीति के साथ एक कार्ययोजना की आवश्यकता होती है। इस कार्य को पूरा करने में गांव की महिला स्व-सहायता समूह का भी योगदान रहा।
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